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प्रेम-डॉ. कंचन पुरी

>> Sunday, October 4, 2009


मौन है बोले
समर्पण की भाषा
प्रेम है पूजा।
प्रीत की रीत
त्याग पहचाने
सच, ये आशा।
खुश रहे वो
मन यही मानता
सदा चाहता
मोह-बंधन
छूटता कब कहां
प्रतीक्षारत्‌।
हर आहट
मुझे उनकी लगे
पर न आये।
संदेशा मिला
अचानक बाहर
चले गये, वो।

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