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जिद्द-डॉ. कंचन पुरी

>> Sunday, October 4, 2009


 कैसी जिद्द है?

मानता नहीं पूत

यही लेना है।

न चाहकर

पूरी कर बैठते

उसकी जिद्द।

मुराद पूरी

देखकर बोले-

धन्यवाद!

पूत की खुशी

के आगे रीता मन

लगे न रीता।

हारे हम तो

निज परछाई से

औरों की तरह।



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