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जिन खोजा तिन पाइयां

>> Saturday, September 4, 2010


एक ग्राम में सभी लोग श्रमदान करके एक मार्ग बना रहे थे जिससे लोगों को आने-जाने में असुविधा न हो। ग्राम के स्‍त्री-पुरुष, बच्‍चे और बूढ़े सभी कठिन परिश्रम कर रहे थे। जो निर्बल या कमजोर थे वे हल्‍का श्रम कर सहयोग कर रहे थे।
 एक तरफ एक आदमी उदास सा खड़ा सबको कार्य करता हुआ देख रहा था। ग्राम का प्रधान उसके पास जाकर प्‍यार से बोला-'बेटा, सभी कार्य कर रहे हैं, यह सामूहिक श्रमदान है, तुम्‍हें भी इसमें हाथ बटाना चाहिए।'
प्रधान जी की बात सुनकर वह आदमी बोला-'आपको काम की पड़ी है और मैं तीन दिन से भूखा हूं, यह आपने नहीं देखा।'
प्रधान जी उसकी बात सुनकर बोले-'बेटा, भूख तुम्‍हारे पेट के अन्‍दर है, जो तुम्‍हे महसूस हो रही है। तुमने अब बताया तभी तो मुझे ज्ञात हुआ। तुम मेरे घर चलो और भरपेट भोजन कर लो।'
वह आदमी प्रधान जी के घर चला गया और भरपेट छककर भोजन किया। भोजन कराने के बाद प्रधान जी ने उससे कहा-'चलो, अब चलकर कुछ श्रमदान तो करो।'
प्रधान की बात सुनकर आदमी बोला-'आपको श्रमदान की पड़ी है। आपने इतना खिला दिया कि अब मुझसे एक कदम चलना भी सम्‍भव नहीं है। आप मुझे एक चारपाई दे दें, मैं यहां आपके घर बिछाकर आराम कर लूंगा।'
उक्‍त कथा से यही सीख मिलती है कि आपको अवसर की चाह है तो आप अवसर खोज लेंगे और यदि बहाना बनाना आपकी आदत है तो आप बहाना खोज लेंगे। किसी ने ठीक कहा है कि जिन खोजा तिन पाइयां। 

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